जनहित को सूचित किया जाता हैं की यह ब्लॉग केवल हसी मज़ाक के लिए इसमे लिखी गयी सच हैं मगर दिल पर लेनी की कोशिश मत ही करिएगा हो सकता हैं आपका हार्ट फैल हो जाए- आज्ञा से अजय पाण्डेय

शुक्रवार, 15 अप्रैल 2011

अच्छा मिश्रा तुम हो मुझे लगा बाजपाई हैं...

मैं सभी  भाइयों  और  बहन  के  टक्को  से  माफ़ी  मांगता  हूँ  की  इतने  दिनों  तक  मैंने  कोई  किस्सा  नही  लिखा|  मगर  इसका  भी  अक  कारन  हैं  और  वो  मैं  आगे  आने  वाले  किस्सों  मैं  शामिल  करूँगा | मुझे  मालूम  हैं  आप  मुझसे  काफी  नाराज़  होंगे  ( मैं  उनकी  बात  नही  कर  रहा  जिनके  किस्से  यहाँ  पर  लिखे  गए  हैं  क्यूंकि  वो  तो  बहुत  खुश  होंगे की अच्छा हुआ साला नही लिख रहा मगर मैं उनको बतादू मैं नही सुधरने वाला ) चलिए  ज्यादा  बकवास  न  करते  हुए  आगे  बढ़ता  हु  और  आज  का  किस्सा  आपके  सामने  लता  हूँ |

तो ये किस्सा उस समय का हैं जब हम अपने धोबी दोस्त चौहान के जन्मदिन पर बहार गए हुए थे. किस्सा शुरू करने से पहले आपको इसके किरदार याद दिला दू| इसके दो अहम् किरदार हैं एक मिश्रा और दूसरा नेता | मिश्रा के बारे मैं अभी आगे आने वाले किस्सों मैं बताऊंगा जब तक आप नेता के बारे मैं जानना चाहते हो तो पढ़े :- हेल्लो मैं अभी केक खाके आता हूँ

धोभी का जन्मदिन मानाने का प्लान बना और तये हुआ की हम लोग शुक्ल सर लोगो के यहाँ पर रात मैं रुकेंगे ( हा मुझे मालूम हैं की यहाँ पर कुछ लोग मुझे टोकना  चाहेंगे क्यूंकि प्लान कुछ और ही था मगर वो मैं किस्सा बाद मैं उठाऊंगा उसका भी असली हीरो मेरा बड़ा भाई नेता ही हैं )|   तो हम बहार गए और काफी मस्ती की धामा चौकड़ी मचाई| समय हुआ सोने का |  अब सब सोने जाने लगे| मैं और जोशी और चौहान ऊपर वाले करे में सो गए | थोड़ी जगह बची थी तो हमने मिश्रा को भी बुलाया की वो भी आके सो जाये मगर तभी नेता ने मिश्रा को आने पास रोक लिया और कहा नीचे ही सो जाओ यार रात में टीवी देख्नेगे | बेचारा मासूम मिश्रा नेता की बातों में आकर फस गया और नीचे सोने को राज़ी हो गया | उस समय न हमे मालूम था न की मिश्रा को की उस दरिन्दे के दिमाग में क्या चल रहा था | और उसके बाद हम सो गए |

आगे का किस्सा मिश्रा की बताई हुई बातों पर आधारित हैं इसके किसी भी इंसान से कोई लेना देना नही ( हा जानवर से हो सकता हैं )| रात बहुत हो चुकी थी हर जगह मछर भरे पड़े थे तभी नेता के दिमाग चमक उठा| उसने मिश्रा से कहा "अरे मिश्रा नीचे जमीन पर कहा सोये हो आओ ऊपर बिस्तर पर सो जाओ इस पर चादर भी हैं मछर नही लगेंगे " बेचारा मिश्रा एक बार फिर उस हरामखोर के चक्कर में आ गया और ऊपर बिस्तर पर लेट गया | आधे घंटे बाद जब हम लो तो सो ही रहे थे और मिश्रा भी ठीक थक खराटे ले रहा था तभी नेता की आँख खुली | उसकी आँखों में बहुत चमक थी पर हमे क्या मालूम था की ये चमक किसी और चीज़ की हैं | नेता धीरे से अपना हाथ उठाया और मिश्रा के पैर पर रख दिया ये देखने के लिए की कही मिश्रा जगा तो नही हुआ हैं | अब ये उसका सौभाग्य कहे की दुर्भाग्य मिश्रा ने कोई हरकत नही की | अब क्या था नेता को तो जैसे हरी झंडी मिल गयी उसने  आव न देखा ताव और मिश्रा का पेट सहलाने लगा | इतने में मिश्रा की नींद खुल गयी और उसने नेता की ये हरकत देखली उसने तुरंत नेता को कहा " अबे हरा*** क्या कर रहा हे बे " | अब नेता क्या करता बेचारा वो फंस चूका था उसके पास कोई चारा नही था| वो दर गया कही मिश्रा उसकी हरकत सबको न बता दे उसने सोचा की ऐसा दिखाते हैं वो नींद में हैं | थोड़ी देर बाद मिश्रा फिर बोला नेता  क्या कर रहे थे बे | नेता एक दम सीधे साढ़े बचे की तरह जो अभी नींद से उठा हो कहता हैं " अच्छा मिश्रा तुम थे मुझसे लगा बाजपाई हैं......."