जनहित को सूचित किया जाता हैं की यह ब्लॉग केवल हसी मज़ाक के लिए इसमे लिखी गयी सच हैं मगर दिल पर लेनी की कोशिश मत ही करिएगा हो सकता हैं आपका हार्ट फैल हो जाए- आज्ञा से अजय पाण्डेय

मंगलवार, 16 अप्रैल 2013

मैंने आठ महीने में बोलना सीखा

नमस्कार प्यारे दोस्तों भाइयों और बहन के टक्को | आज बहुत दिनों के बाद मैं कोई किस्सा लिखने जा रहा हूँ| चुकी इतने दिनों के बाद मैं कोई किस्सा लिख रहा हू तो सोचा कोई ऐसे दमदार किरदार का लिखू जो अपने आप मैं बहुत बड़ा खलीफा हो. खलीफा से याद आया की आधे से ज़्यादा मेरे दोस्त खलीफा ही हैं| तो मैं दमदार व्यक्ति की बात कर रा था ओर वो मेरे हिसाब से ओर कोई नही कुन्नू कमीना ही हैं| इस के बारे मैं क्या कहे ये स्वयम् अक अवतार हैं इनके क़िस्सो के लिए तो पूरी किताब लिखी जा सकती हैं लेकिन आज केवल अक ही किस्सा लेते हैं जिसमे ये महा पुरुष अपने आप को ८ महीने मैं ही बोलने वाला घोषित कर देते हैं|  किस्से के शुरू होने पहले से मैं आप सब से निवेदन करता हू इनका ध्यान कर लिया जाए| हे बड्की दीदी तुम्हे बारंबार नमस्कार हैं| तुम गूगल के अवतार हो ओर तुमसे बड़ा चिरकूट इस धरती पर ओर कोई नही | इसलिए  यहा किस्सा मैं आपको समर्पित करता हूँ|

बात उस जमाने की हैं जब हम नये नये कॉलेज मैं आए थे ओर अभी दो ही टीन महीने हुए थे यानी आपसे मैल मिलाप हो ही रहा था| उसी दौरान हमारी इस महापुरुष से मुलाकात हुई| मैं भगवान का अभी भी अभारी हू इस चीज़ का| तो हुमारी मुलाकात हुई ओर मुलाकात दोस्ती मैं तब्दील हो गयइ | अब हम तो ठहरे नीथले शाम को कोई काम नही तो शशांक के कमरे बैठे के मूह**** कर रहे थे| इतने ये भाई साहब पधारे | बात कुछ बचपन से रिलेटेड थी और मैं आपको यहा थोड़ा रोक कर अपने आने वाले एक किस्से के बारें मैं संकेत देना चाहूँगा | ये भाई साहब उन कुछ लोगो मैं से हैं जो खड़े खड़े रिसर्च कर डालते हैं | इस बारें मे मैं आपको अपने आग आने वाले पोस्ट मैं बतौँगा| हा तो इन भाई साहब आते ही अपना रिसर्च वर्क फेका |  इन्होने फेकना शुरू किया की यार मैं तो बचपन से ही स्मार्ट हू फलना धिमका तब तक इनके बड़े भाई शशांक भैया बोल पड़े तुम गाते अच्छा हो| इन्होने आव न देखा तव पेल दिया की भाई ये तो कुछ नही मैं तो बचपन से ही ऐसा हूँ| यहा तक मेरी मम्मी बताती हैं मैने तो ८ महीने से बोलना चालू कर दिया था |  

यहा सुनते ही वाहा बैठे कई लोगो की चीखे और कइयो की मूत निकल गयी| ये तो कोई मानने को तय्यार ही ना था| आख़िर मैं कई माँ बहन सुनने के बाद इन भाई साहब ने माना की इनसे ग़लती हो गयी ओर ये हम लोगो को चूतिया समझ कर ऐसे ही फेक रहे थे| धन्य हो गूगल बाबा आपकी सदा ही जय हो|

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