जनहित को सूचित किया जाता हैं की यह ब्लॉग केवल हसी मज़ाक के लिए इसमे लिखी गयी सच हैं मगर दिल पर लेनी की कोशिश मत ही करिएगा हो सकता हैं आपका हार्ट फैल हो जाए- आज्ञा से अजय पाण्डेय

गुरुवार, 25 अप्रैल 2013

मैं घर से भाग जाऊँगा और समोसे बेचूँगा

नमस्कार दोस्तों आप लोगो ने मेरे पिछले किस्से को सराह उसके लिए धन्यवाद| इस ब्लॉग की फेन फॉलोयिंग देखते हुए मुझे लगा क्यूँ ना इस बार मैं आप लोगो के लिए एक तबला तोड़ किस्सा पेश करूँ| चुकी मुझे ऐसा लगा की मेरे क़िस्सो से किसी को आघात ना पहुचे इस लिए मैने अपने कलाकार दोस्तों के नाम ना छापने का संकल्प लिया है|  उनको मैं ऐसे नामो से संबोधित करूँगा जिससे वो खुद और बाकी के उनके शुभ चिंतक आपने आप ही पहचान जाएँगे| अब आपको ज़्यादा ना पकते हुए अपने किस्से की ओर ले चलता हू|
बात उस जमाने की है जब हम सेकेंड इयर मे थे|  मेरे दो रूम पार्ट्नर थे| कालिया और संभा (नाम बदले हुए हैं)| ये दोनो आपने आप मे कतई हरांखोर| ये इतने काबिल थे की आप ये ही समझ लीजिए अगर ये लोग ना होते तो शायद ये ब्लॉग भी ना होता | अपने चार साल के सुनहरे दीनो और ज़्यादा सुनहरा करने मैं इन्ह लोगो का हाथ हैं| वैसे इसके लिए मैं भगवान का अभी तक शुक्रिया अदा करता हू की ये लोग मेरे रूम पार्ट्नर बने|   हम तीनो मे कई समानताए थी| हम तीनो कामचोर थे| हम तीनो आलसी थे (संभा थोड़ा कम था सफाई के मामले मे वो नंबर एक का मेहनती था मैं तो अभी भी उससे शर्त लगता हू की सफाई करंचारी की भरती आवे तो भर दो तुम्ही टॉप करोगे) चलिए ये तो दूसरी बात है फिर कभी डिसकस करेंगे| और आख़िरी एक वो बात जो आपमे भी पाई जाती होगी हम तीनो मे से कोई भी अक टक्का नही पढ़ता था| पढ़ते भी कैसे बाकी काम जो निपटने थे जैसे कालिया को अपनी गर्ल फ़्रेंड से बतियाना होता था और संभा और मुझको अपनी चत्टिया बिछाने से फ़ुर्सत नही मिलती थी| और मिले भी कैसे जहा दिनशा बाबा बदकी दीदी ओर नेता जैसे गदहा घोचर हो वाहा हम जैसे नालयकों का तो कोई स्कोप ही नही| 
तो आइए बहुत हो गया अब मुद्दे की बात करते हैं क्यूंकी माहौल बनाने मे किस्से की मा बहन हो जाती हैं| अब आप सोच ही सकते है ऐसे चरित्रवान् छात्रों का एग्ज़ॅम से एक रात पहले क्या होता होगा | नही आप ज़्यादा समझदार के ****** ना बानिए आसा हमारे साथ कुछ नही होता था हम लोग आख़िरी दिन भी लग के मूह***** करते थे| मुझे याद नही हमारा कौन सा पेपर था हम रात मैं बैठे पढ़ रहे थे| पढ़ क्या रहे थे तोते जो हम लोगो के उड़े हुए थे उन्हे गिन रहे थे| तभी अचानक संभा बोलता हैं अबे १२ घंटे है अपने पास पढ़ने के लिए | ये सुनते ही मुझे बड़ी खुशी की कोई तो बोला पढ़ने मैं मन लग नही रहा था| मैने तभी बोला की  यार कहा बीटेक करने चले आए आच्छा ख़ासा बीसीए कर लेते तो ठीक था| इतनी देर मैं कालिया को मौका मिल गया | अब उनकी सुनिए वो कहते है की उनको अपना पानी के पाऔच बेचने का बसनेस करना था अपने गाव भरवारी मे| आप लोग सोच रहे होंगे कितनी चूतिया सोच थी ना हम लोगो की तो आगे सुनिए आगे संभा भाई कहते " अरे यार बहुत टेंसन हो रही हैं कल के पेपर मे कही लटक गये तो बाप घर से निकाल देंगे|" पता नही ऐसा बोलते ही संभा की आँखें एक सोच कहे या डर से चमक उठी|  तभी वह कहता है " नही मैं ऐसा नही होने दूँगा बाप भगाए इससे पहले मैं खुद ही भाग जाऊँगा और अपनी कालोनी मैं समोसे वाले के यहा समोसे बेचूँगा| इतना सुनते ही कालिया और मेरी हसी छूट गयी मगर संभा रुकने वालों मे से कहा वो कहता हैं" नही यार अपनी कालोनी मैं समोसे बेचूँगा तो लोग क्या कहेंगे और कही बाप समोसे लेने आ गये तो | नही नही इससे बढ़िया तो मैं मैं एक डाकूं बन जाऊ हा ये सही हैं मैं डाकू बनउगा और नाम रखूँगा बाबर |
अब तो हम लोगो की हसी का ठिकाना नही था लेकिन संभा भाई तो संभा ही थे | वो अभी भी ना रुके  आगे बोलते हैं " और बाबर बनने के बाद सबसे पहले मैं आपने बाप का ही बॅंक लूतूंगा | वाहा अक बुद्धा सेक्यूरिटी गौर्ड़ बैठता हैं उसको पेल के ५ १० लाख तो ले ही लूँगा अपना करियर शुरू करने के लिए|" अब हम लोग भी क्या करते बंदे की बात मे दम था और हम लोग भी उसका साथ देने का वादा करके अगले हिस्से की पढ़ाई करने लगे ;) |


मंगलवार, 16 अप्रैल 2013

मैंने आठ महीने में बोलना सीखा

नमस्कार प्यारे दोस्तों भाइयों और बहन के टक्को | आज बहुत दिनों के बाद मैं कोई किस्सा लिखने जा रहा हूँ| चुकी इतने दिनों के बाद मैं कोई किस्सा लिख रहा हू तो सोचा कोई ऐसे दमदार किरदार का लिखू जो अपने आप मैं बहुत बड़ा खलीफा हो. खलीफा से याद आया की आधे से ज़्यादा मेरे दोस्त खलीफा ही हैं| तो मैं दमदार व्यक्ति की बात कर रा था ओर वो मेरे हिसाब से ओर कोई नही कुन्नू कमीना ही हैं| इस के बारे मैं क्या कहे ये स्वयम् अक अवतार हैं इनके क़िस्सो के लिए तो पूरी किताब लिखी जा सकती हैं लेकिन आज केवल अक ही किस्सा लेते हैं जिसमे ये महा पुरुष अपने आप को ८ महीने मैं ही बोलने वाला घोषित कर देते हैं|  किस्से के शुरू होने पहले से मैं आप सब से निवेदन करता हू इनका ध्यान कर लिया जाए| हे बड्की दीदी तुम्हे बारंबार नमस्कार हैं| तुम गूगल के अवतार हो ओर तुमसे बड़ा चिरकूट इस धरती पर ओर कोई नही | इसलिए  यहा किस्सा मैं आपको समर्पित करता हूँ|

बात उस जमाने की हैं जब हम नये नये कॉलेज मैं आए थे ओर अभी दो ही टीन महीने हुए थे यानी आपसे मैल मिलाप हो ही रहा था| उसी दौरान हमारी इस महापुरुष से मुलाकात हुई| मैं भगवान का अभी भी अभारी हू इस चीज़ का| तो हुमारी मुलाकात हुई ओर मुलाकात दोस्ती मैं तब्दील हो गयइ | अब हम तो ठहरे नीथले शाम को कोई काम नही तो शशांक के कमरे बैठे के मूह**** कर रहे थे| इतने ये भाई साहब पधारे | बात कुछ बचपन से रिलेटेड थी और मैं आपको यहा थोड़ा रोक कर अपने आने वाले एक किस्से के बारें मैं संकेत देना चाहूँगा | ये भाई साहब उन कुछ लोगो मैं से हैं जो खड़े खड़े रिसर्च कर डालते हैं | इस बारें मे मैं आपको अपने आग आने वाले पोस्ट मैं बतौँगा| हा तो इन भाई साहब आते ही अपना रिसर्च वर्क फेका |  इन्होने फेकना शुरू किया की यार मैं तो बचपन से ही स्मार्ट हू फलना धिमका तब तक इनके बड़े भाई शशांक भैया बोल पड़े तुम गाते अच्छा हो| इन्होने आव न देखा तव पेल दिया की भाई ये तो कुछ नही मैं तो बचपन से ही ऐसा हूँ| यहा तक मेरी मम्मी बताती हैं मैने तो ८ महीने से बोलना चालू कर दिया था |  

यहा सुनते ही वाहा बैठे कई लोगो की चीखे और कइयो की मूत निकल गयी| ये तो कोई मानने को तय्यार ही ना था| आख़िर मैं कई माँ बहन सुनने के बाद इन भाई साहब ने माना की इनसे ग़लती हो गयी ओर ये हम लोगो को चूतिया समझ कर ऐसे ही फेक रहे थे| धन्य हो गूगल बाबा आपकी सदा ही जय हो|